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FIVE FINGURES
क्या लगता है आपको? कि मैं कौन हूं ?कहां से हो? कैसे हो ?लेकिन मुझे तो लगता है कि मैं क्यों हूं?. सच पूछिए जनाब........ हर कोई चाहता है कि उसके अनुसार यह दुनिया चले..... लोग उसके बातों को माने ......उसके अनुभवों को सुने.......उसकी बातों को जाने.... लेकिन क्या कोई सामने वाले को भी सुनना पसंद करता है कभी ?नहीं ना सचमुच में नहीं..
आज फिर से वह अलसाई सुबह...... हर दिन की तरह लगता है कि यह सुबह क्यों आती है? आपको भी लगता होगा , कभी कभी तो ऐसा लगता है कि यह सुबह जो आई है...यह जाए ही नहीं ...लेकिन चली ही जाती है. सुबह में जो वह गुनगुनपन होता है धीरे-धीरे कठोर होने लगता है.. परेशान करने लगता है.. जिंदगी में कभी कभी कोई कोई ही ऐसा दिन आता है जो सुबह से लेकर शाम तक खुशियां ही खुशियां देता है. लेकिन आपकी खुशियों पर भी जलने वाले लोग कम नहीं होते हैं तो क्या ऐसा भी हो सकता है कि मैं छुपा कर खुश हो जाऊं.. आप कभी हुए हैं चुपचाप खुश? बिना किसी को बताएं खुश... कहता है खुशी तो किसी से छुपाई नहीं जा सकती और छुपा भी लिया तो क्या वह किस बात की खुशी.
कोविड-19 का कहर लॉक डाउन का वह सुबह लगता है कि सुबह हो ही नहीं तो अच्छा है... हर तरफ वीरान वीरान सा शहर, चिड़ियों का लॉकडाउन नहीं होता है चिड़ियों को कोई रोक पाता है भला हर कोई तो यही चाहता है कि मैं आज आ रहा हूं लेकिन रह नहीं पाता है रहने ही नहीं देता है.. यह समाज वाले ...यह दुनिया वाले ..और कभी-कभी तो घर वाले भी. यहां मत जाओ यहां मत देखो यहां मत करो यह मत करो वह मत करो... क्या है ? मेरा जन्म ही क्यों हुआ है?.
मेरे घर के सामने पेड़ पर वही फुदक थी चिड़ियों का झुंड उसे तो कोई परवाह ही नहीं है आती है जाती है, खाती है कभी-कभी मेरे सामने से मकड़ी चुनकर ले जाती है. मेरे से डरती भी नहीं है.. देखो तो चिड़िया भी नहीं डरती है मेरी बात सुनने के पहले चिड़िया भी चली जाती है.... जैसे और लोग चले जाते हैं.... आप लोग क्या सुन पाएंगे मेरी बात...... सचमुच में नहीं सुन पाएंगे ना... अगर सुन लिए तो अच्छा है ...नहीं सुने तो भी अच्छा ही है ...मैं इसमें कर ही कह सकती हूं, किसी दूसरों की हिम्मत नहीं होती है की वह झांके दर्द तो अपने पहचान वाले ही देते हैं....
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